शुक्रवार, 29 मार्च 2024

‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर’ को साकार करने में सफल रहे रणदीप हुड्डा

स्वातंत्र्यवीर सावरकर पर रणदीप हुड्डा ने बेहतरीन फिल्म बनाई है। सच कहूं तो यह फिल्म से कहीं अधिक है। सिनेमा का पर्दा जब रोशन होता है तो आपको इतिहास के उस हिस्से में ले जाता है, जिसको साजिश के तहत अंधकार में रखा गया। भारत की स्वतंत्रता के लिए हमारे नायकों ने क्या कीमत चुकाई है, यह आपको फिल्म के पहले फ्रेम से लेकर आखिरी फ्रेम तक में दिखेगा। अच्छी बात यह है कि रणदीप हुड्डा ने उन सब प्रश्नों पर भी बेबाकी से बात की है, जिनको लेकर कम्युनिस्ट तानाशाह लेनिन–स्टालिन की औलादें भारत माता के सच्चे सपूत की छवि पर आघात करती हैं। कथित माफीनामे से लेकर 60 रुपए पेंशन तक, प्रत्येक प्रश्न का उत्तर फिल्म में दिया गया है। वीर सावरकर जन्मजात देशभक्त थे। चाफेकर बंधुओं के बलिदान पर किशोरवय में ही वीर सावरकर ने अपनी कुलदेवी अष्टभुजा भवानी के सामने भारत की स्वतंत्रता का संकल्प लिया। अपने संकल्प को साकार करने के लिए किशोरवय में ही ‘मित्र मेला’ जैसा संगठन प्रारंभ किया। क्रांतिकारी संगठन ‘अभिनव भारत’ की नींव रखी। विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। अंग्रेजों को उनकी ही भाषा में उत्तर देने के लिए लंदन जाकर वकालत की पढ़ाई की। हालांकि क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण अंग्रेजों ने उन्हें डिग्री नहीं दी। ब्रिटिश शासन के घर ‘लंदन’ में किस प्रकार वीर सावरकर ने अंग्रेजों को चुनौती दी, इसकी झलक भी फिल्म में दिखाई देती है। नि:संदेह, वीर सावरकर के महान व्यक्तित्व के संबंध में फिल्म न्याय करने में सफल हुई है।

देखिए- स्वातंत्र्यवीर सावरकर और महात्मा गांधी के संबंध

एक और अच्छी बात निर्माता–निर्देशक ने स्थापित की है कि वैचारिक या सैद्धांतिक मतभेद होने के बाद भी बड़े नेता एक–दूसरे का सम्मान करते थे। जो लोग यह स्थापित करने की कोशिश करते हैं कि वीर सावरकर महात्मा गांधी के विरोधी थे, उनको अवश्य ही यह पता होना चाहिए कि दोनों की सोच अवश्य भिन्न थी लेकिन दोनों एक–दूसरे के विरोधी नहीं थे। महात्मा गांधी ने तो यहां स्वीकार किया कि वीर सावरकर ने मुझसे कहीं पहले ब्रिटिश शासन की बुराइयों को देख लिया था। गांधीजी ने सावरकर बंधुओं को भारत माता का सपूत भी कहा और कालापानी से उनकी मुक्ति के लिए आवाज भी उठाई। वीर सावरकर भी स्पष्ट कहते हैं कि “वे गांधीजी के विरोधी नहीं, बल्कि उनकी अहिंसा की नीति के विरोधी हैं”। महात्मा गांधीजी ने अस्पृश्यता को समाप्त करने के जो प्रयत्न प्रारंभ किए, वैसे प्रयत्न प्रभावी ढंग से स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने भी किए। उस समय अछूत कहे जानेवाले बंधुओं को मंदिर में प्रवेश दिलाना, अछूत को पुजारी बनाना, सामूहिक सहभोज के आयोजन, जबरन या धूर्तता से मुस्लिम बनाए गए हिंदुओं की घर वापसी, अंधविश्वास को दूर करना और राष्ट्रीयता की भावना को पुष्ट करना, जैसे अनेक नवाचार वीर सावरकर ने कालापानी से बाहर आकर किए। इन सबकी झलक फिल्म में भी देखने को मिलती है। सरदार भगत सिंह, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, मदनलाल ढींगरा, लाला हरदयाल, मैडम भीखाजी कामा और श्यामजी कृष्ण वर्मा सहित अनेक स्वतंत्रता सेनानियों के साथ संबंधों को भी फिल्म में दिखाया गया है।

देखिए- स्वातंत्र्यवीर सावरकर और सरदार भगत सिंह का संबंध

कलाकारों ने अद्भुत काम किया है। एक–एक पात्र को जीवंत किया है। विशेषकर रणदीप हुड्डा ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर को पर्दे पर साकार कर दिया। हुड्डा अपने अभिनय से वीर सावरकर के साथ एकाकार होते हुए दिखे। कालापानी के वेदना से भरे दृश्य हों या फिर अपने घर भाईयों के साथ आत्मीय पल, सबको बखूबी दिखाया गया है। कालापानी में जब वे अपने भाई बाबाराव सावरकर (गणेश सावरकर) से मिलते हैं, तब जो भाव–भंगिमा उनके चेहरे पर दिखती है, वह दर्शकों की आंखों में आसूं लाने में सक्षम है। वीर सावरकर के बड़े भाई की भूमिका में अमित सियाल का अभिनय बहुत प्रभावी रहा है।

फिल्म ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर’ पहले दृश्य से लेकर आखिरी दृश्य तक दर्शकों को बांधकर रखती है। अनेक प्रश्नों के उत्तर देती है तो कई प्रश्न पैदा भी करती है। फिल्म के आखिर में वीर सावरकर कहते हैं– “जब बापू पर दस दिन पहले भी हमला हुआ था तो सरकार ने उनकी सुरक्षा के बंदोबस्त क्यों नहीं किए?” यह प्रश्न अक्सर मैं भी उठता हूं, लेकिन आज तक किसी ने इसका संतोषजनक उत्तर नहीं दिया है। वरिष्ठ पत्रकार प्रखर श्रीवास्तव की पुस्तक ‘हे राम’ पढ़कर यह प्रश्न और गहरा हो जाता है। पुस्तक से स्मरण आता है कि स्वातंत्र्यवीर सावरकर द्वारा लिखी पुस्तक ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ को क्रांतिकारी क्रांति की श्रीमद् भगवदगीता मानते थे। उस पुस्तक को नेताजी सुभाषचंद्र बोस से लेकर सरदार भगत सिंह तक ने प्रकाशित कराया और प्रसारित किया था। स्मरण रहे कि सरदार भगत सिंह तो जेल में भी वीर सावरकर के साहित्य का न केवल अध्ययन कर रहे थे अपितु उनकी पुस्तकों से नोट्स भी ले रहे थे। इस संदर्भ में उनकी जेल डायरी पढ़नी चाहिए, जिसमें वीर सावरकर की ‘हिंदू पदपदशाही’ पुस्तक के नोट्स पढ़े जा सकते हैं। वीर सावरकर की यह पुस्तक छत्रपति शिवाजी महाराज के स्वराज्य पर केंद्रित है।

देखिए- जब वीर सावरकर के अपमान के लिए पत्रकार निरंजन टाकले के लेख पर पत्रिका 'द वीक' को मांगनी पड़ी माफी

बहरहाल, यह फिल्म अवश्य देखनी चाहिए। इतिहास के अनकहे किस्सों की जानकारी देने के साथ ही यह फिल्म इतिहास को देखने की नई दृष्टि भी देती है। फिल्म देखने के बाद आपको यह भी ध्यान आएगा कि क्यों सत्ता द्वारा पोषित साहित्यकारों एवं इतिहासकारों ने भारत के नायकों के साथ न्याय नहीं किया? किस हेतु से कुछ नायकों के संबंध में भ्रम खड़े करने के प्रयास किए गए। आईएमडी पर फिल्म को जबरदस्त सराहना मिली है। फिल्म समीक्षकों ने भी खुलकर ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर’ की प्रशंसा की है। फिल्म का निर्देशन पहले महेश मांजरेकर कर रहे थे, लेकिन रणदीप हुड्डा के साथ वैचारिक मतभेद के कारण मांजरेकर ने फिल्म निर्माण से अपने हाथ पीछे खींच लिए। यह भी कह सकते हैं कि स्वातंत्र्यवीर सावरकर नाम की आग में झुलसने का डर उनके मन में बैठ गया होगा। बहरहाल, वीर सावरकर के व्यक्तित्व का इतना गहरा प्रभाव रणदीप हुड्डा पर पड़ा कि उन्होंने स्वयं ही निर्देशक की कमान संभालकर इतिहास रचने की ठान ली। रणदीप हुड्डा की निर्देशक के रूप में भले ही यह पहली फिल्म है, लेकिन जिस भव्य तरीके और गहराई के साथ उन्होंने ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर’ को प्रस्तुत किया है, उसके लिए उनकी जितनी सराहना की जाए कम है।

अगर आपने अभी तक Swatantrya Veer Savarkar फिल्म नहीं देखी है, तो सबसे पहले इसे देख लीजिए

यह भी पढ़िए- 

गुरुवार, 28 मार्च 2024

छत्रपति शिवाजी महाराज ने स्थापित किया 'स्वदेशी' का महत्व

 छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती पर विशेष

छत्रपति शिवाजी महाराज समाधि स्थल, रायगड दुर्ग / फोटो- लोकेन्द्र सिंह

छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म शिवनेरी दुर्ग में फाल्गुन मास (अमावस्यांत) कृष्ण पक्ष तृतीया को संवत्सर 1551 में हुआ। ग्रेगोरियन कैलेंडर में यह दिनांक 19 फरवरी, 1630 होती है। चूँकि छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन ‘स्व’ की स्थापना को समर्पित रहा, इसलिए सही अर्थों में उनकी जयंती भारतीय पंचाग के अनुसार मनायी जानी चाहिए। स्मरण रहे कि चारों ओर जब पराधीनता का गहन अंधकार छाया था, तब छत्रपति शिवाजी महाराज प्रखर सूर्य की भाँति हिन्दुस्तान के आसमान पर चमके थे। ‘हिन्दवी स्वराज्य’ की स्थापना करके उन्होंने वह करके दिखा दिया, जिसकी कल्पना करना भी उस समय कठिन था। शिवाजी महाराज ऐसे नायक हैं, जिन्होंने मुगलों और पुर्तगीज से लेकर अंग्रेजों तक, स्वराज्य के लिए युद्ध किया। भारत के बड़े भू-भाग को आक्रांताओं के चंगुल से मुक्त कराकर, वहाँ ‘स्वराज्य’ का विस्तार किया। जन-जन के मन में ‘स्वराज्य’ का भाव जगाकर शिवाजी महाराज ने समाज को आत्मदैन्य की परिस्थिति से बाहर निकाला। ‘स्वराज्य’ के प्रति समाज को जागृत करने के साथ ही उन्होंने ऐसे राज्य की नींव रखी, जो भारतीय जीवनमूल्यों से ओतप्रोत था। शिवाजी महाराज ने हिन्दवी स्वराज्य की व्यवस्थाएं खड़ी करते समय ‘स्व’ को उनके मूल में रखा। ‘स्व’ पर आधारित व्यवस्थाओं से वास्तविक ‘स्वराज्य’ को स्थापित किया जा सकता है।

सुनिए, छत्रपति शिवाजी महाराज पर बुद्धिजीवियों के विचार

मंगलवार, 19 मार्च 2024

राम मंदिर और संघ : समाज के लिए दृष्टिबोध है प्रतिनिधि सभा का प्रस्ताव

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का प्रस्ताव- ‘श्रीराममन्दिर से राष्ट्रीय पुनरुत्थान की ओर’ 

भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा से जब समूचा देश अभिभूत है, तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने ‘श्रीराममन्दिर से राष्ट्रीय पुनरुत्थान की ओर’ शीर्षक से प्रस्ताव पारित करके समाज के सामने बड़ा लक्ष्य प्रस्तुत किया है। ‘रामराज्य’ की संकल्पना को साकार करने के लिए नागरिकों के जीवन एवं उनके सामाजिक दायित्व में जिस प्रतिबद्धता की आवश्यकता है, उसका आग्रह इस प्रस्ताव में है। श्रीराम के आदर्शों के अनुरूप समरस, सुगठित राष्ट्रजीवन खड़ा करने का जिस प्रकार का सकारात्मक वातावरण बन गया है, उसको पुष्ट करने की प्रेरणा संघ ने नागरिकों को दी है। संघ का मानना है कि श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की घटना भारत के पुनरुत्थान के गौरवशाली अध्याय के प्रारंभ होने का संकेत है। नि:संदेह यही सच है। कहना होगा कि भारत की ‘नियति से भेंट’ अब जाकर हुई है। श्रीरामजन्मभूमि पर श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा से भारत के स्वदेशी समाज में आत्मगौरव की भावना का संचार हुआ है, वह आत्मविस्मृति की स्थिति से बाहर निकला है। सम्पूर्ण समाज हिंदुत्व के भाव से ओतप्रोत होकर अपने ‘स्व’ को जानने तथा उसके आधार पर जीने के लिए तत्पर हो रहा है। समाज में दिख रहा यह परिवर्तन ‘स्व’ की ओर भारत की यात्रा का द्योतक है। यह यात्रा भगवान श्रीराम के आदर्शों के अनुकूल हो, यह जिम्मेदारी भारतीयों की है। भारतीय समाज मंदिर निर्माण को ही अपने संघर्ष का उद्देश्य मानकर संतोष न कर ले, इसलिए संघ ने स्मरण कराया है कि राम मंदिर के पुनर्निर्माण का उद्देश्य तभी सार्थक होगा, जब सम्पूर्ण समाज अपने जीवन में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शों को प्रतिष्ठित करने का संकल्प ले। श्रीराम के जीवन मे परिलक्षित त्याग, प्रेम, न्याय, शौर्य, सद्भाव एवं निष्पक्षता आदि धर्म के शाश्वत मूल्यों को आज समाज में पुनः प्रतिष्ठित करना आवश्यक है। सभी प्रकार के परस्पर वैमनस्य और भेदों को समाप्त कर समरसता से युक्त पुरुषार्थी समाज का निर्माण करना ही श्रीराम की वास्तविक आराधना होगी।

गुरुवार, 14 मार्च 2024

सच का सामना करने की है दम तो देखिए- बस्तर : द नक्सल स्टोरी

कम्युनिस्टों की हिंसक एवं क्रूर विचारधारा एवं भारत विरोधी सोच को उजागर करती है सुदीप्तो सेन की फिल्म 

‘द केरल स्टोरी’ के बाद सुदीप्तो सेन ने फिल्म ‘बस्तर: द नक्सल स्टोरी’ के माध्यम से एक और आतंकवाद को, उसके वास्तविक रूप में, सबके सामने रखने का साहसिक प्रयास किया है। भारत में कम्युनिस्ट, नक्सल और माओवाद (संपूर्ण कम्युनिस्ट परिवार) के खून से सने हाथों एवं चेहरे को छिपाने का प्रयास किया जाता रहा है। लेफ्ट लिबरल का चोला ओढ़कर अकादमिक, साहित्यक, कला-सिनेमा एवं मीडिया क्षेत्र में बैठे अर्बन नक्सलियों ने कहानियां बनाकर हमेशा लाल आतंक का बचाव किया और उसकी क्रांतिकारी छवि प्रस्तुत की। जबकि सच क्या है, यही दिखाने का काम ‘बस्तर : द नक्सल स्टोरी’ ने किया है। फिल्म संवेदनाओं को जगाने के साथ ही आँखों को भिगो देती हैं। फिल्म जिस दृश्य के साथ शुरू होती है, वह दर्शकों को हिला देता है। जब मैं ‘बस्तर’ की विशेष स्क्रीनिंग देख रहा था, तब मैंने देखा कि अनेक महिलाएं एवं युवक भी पहले ही दृश्य को देखकर रोते हुए सिनेमा हॉल से बाहर निकल गए। जरा सोचिए, हम जिस दृश्य को पर्दे पर देख नहीं पा रहे हैं, उसे एक महिला और उसकी बेटी ने भोगा है। फिल्म में कुछ दृश्य विचलित कर सकते हैं। यदि उन दृश्यों को दिखाया नहीं जाता, तो दर्शक कम्युनिस्टों की हिंसक मानसिकता का अंदाजा नहीं लगा सकते थे। 76 जवानों को जलाकर मारने की घटना का चित्रांकन, कुल्हाड़ी से निर्दोष वनवासियों की हत्या करने के दृश्य, मासूम बच्चों को उठाकर आग में फेंक देने की घटना, यह सब देखने के लिए दम चाहिए। यह फिल्म अधिक से अधिक लोगों को देखनी एवं दिखायी जानी चाहिए। सुदीप्तो सेन को सैल्यूट है कि उन्होंने बेबाकी से लाल आतंक के सच को दिखाया है। हालांकि, कम्युनिस्ट हिंसा की और भी क्रूर कहानियां हैं, जिन्हें दिखाया जाना चाहिए था लेकिन फिल्म में समय की एक मर्यादा है। अपेक्षा है कि सुदीप्तो इस पर एक वेबसीरीज लेकर आएं।

सोमवार, 11 मार्च 2024

मूल्यानुगत मीडिया के आग्रही थे प्रो. कमल दीक्षित

प्रो. कमल दीक्षित की पुस्तक- मूल्यानुगत मीडिया : संभावना एवं चुनौतियां


बाल सुलभ मुस्कान उनके चेहरे पर सदैव खेलती रहती थी। मानो उनका ‘कमल मुख’ निश्छल हँसी का स्थायी घर हो। कई दिनों से माथे पर नाचनेवाला तनाव भी उनसे मिलने भर से न जाने कहाँ छिटक जाता था। उनका सान्निध्य जैसे किसी साधु की संगति। उनके लिए कहा जाता है कि वे पत्रकारिता की चलती-फिरती पाठशाला थे। उनकी पाठशाला में व्यावसायिकता से कहीं बढ़कर मूल्यों की पत्रकारिता के पाठ थे। ‘व्यावहारिकता’ के शोर में जब ‘सिद्धांतों’ को अनसुना करने का सहूलियत भरी राह पकड़ी जा रही हो, तब मूल्यों की बात कोई असाधारण व्यक्ति ही कर सकता है। मूल्य, सिद्धांत एवं व्यवहार के ये पाठ प्रो. दीक्षित के लिए केवल सैद्धांतिक नहीं थे अपितु उन्होंने इन पाठों को स्वयं जीकर सिद्ध किया था। इसलिए जब वे मूल्यानुगत मीडिया के लिए आग्रह करते थे, तो उसे अनसुना नहीं किया जाता था। इसलिए जब वे पत्रकारिता में मूल्यों की पुनर्स्थापना के प्रयासों की नींव रखते हैं, तो उस पर अंधकार में राह दिखानेवाले ‘दीप स्तम्भ’ के निर्माण की संभावना स्पष्ट दिखाई देती थी।

शुक्रवार, 8 मार्च 2024

धार्मिक-आध्यात्मिक सर्किट के रूप में विकसित होगा उज्जैन-इंदौर संभाग, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का सराहनीय निर्णय

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उज्जैन-इंदौर संभाग को धार्मिक-आध्यात्मिक सर्किट के रूप में विकसित करने का सराहनीय निर्णय लिया है। यह निर्णय मध्यप्रदेश के विकास को नयी ऊंचाईयों पर ले जाने के साथ ही उसे बड़ी पहचान देगा। यह सर्वविदित है कि उज्जैन-इंदौर संभाग सांस्कृतिक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक रूप से समृद्ध क्षेत्र है। इस संभाग में दो ज्योतिर्लिंग प्रकाशमान हैं- महाकाल एवं ओंकारेश्वर। जिनके दर्शन के लिए देशभर से श्रद्धालु पहुँचते हैं। महाकाल लोक के निर्माण के बाद से तो उज्जैन आनेवाले श्रद्धालुओं की संख्या में कई गुना बढ़ोतरी हो गई है। इसी संभाग के मंदसौर में पशुपतिनाथ मंदिर, नलखेड़ा में बगुलामुखी माई का मंदिर, खंडवा में दादा धूनीवाले, इंदौर में खजराना गणेश मंदिर सहित अनेक और स्थान ऐसे हैं, जो धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व के स्थान है।

बुधवार, 7 फ़रवरी 2024

आत्मविश्वास से भरे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बोले- अबकी बार 400 पार

अपने तीसरे कार्यकाल को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आत्मविश्वास से भरे हुए हैं। प्रधानमंत्री को देश की जनता पर विश्वास है कि इस बार पहले की अपेक्षा जनता की ओर से उन्हें और अधिक बड़ा जनादेश मिलेगा। लोकसभा में प्रधानमंत्री मोदी के भाषण की प्रत्येक पंक्ति इस आत्मविश्वास को व्यक्त करती है। दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी के आत्मविश्वास के पीछे वर्तमान समय में बना देश का वातावरण है। अयोध्या में श्रीरामलला का मंदिर निर्माण ने जिस प्रकार की ऊर्जा का संचार समूचे देश में किया है, वह अचंभित करनेवाला है। देश में चल रही रामलहर को देखकर कोई भी बता सकता है कि भारत का समाज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी की सरकार के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए लोकसभा चुनाव का बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा है।